Wednesday, March 17, 2010

चौराहा...

हर पग एक चौराहा होता,

चार कदम चलते ही मिलता,
एक नव पथिक साथ जो चलता,
तीन चार पग चल कर मुड़ता,
साथ, यहीं तक उसका होता,
थोडा कष्ट ह्रदय में होता,
फिर भी मानव आगे बढ़ता,

अगले ही पग अगला मिलता,
खिलता गाता और मुस्काता
बात-बात में हँसता रोता
पल-पल साथ है उसका होता
संग में दोनों कसमे खाते
बिछड़ेंगे न मरते जीते
लेकिन, समय-चक्र फिर आता,
आगे फिर चौराहा आता,

दोनों के पथ अलग हैं होते,
दूर होते हैं हसते रोते,
अपने-अपने रस्ते जाते,
लेकिन मन में साथ है होता

जीवन चक्र हमेशा चलता,
जीवन चक्र हमेशा चलता.......

1 comment:

  1. बहुत खुबसूरत लिखा है, शब्द और भावना एक साथ आपकी कविता में पाई जा सकती हैं.........

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