मेरे मन की अभिव्यक्ति है ,
ये कविता मेरी शक्ति है.....
कुछ विषयों पर मेरा चिंतन,कुछ हर छन में जीवन की प्यास,
कुछ अपने शब्दों में लिखकर एक माला बुनने का प्रयास,
कुछ आशाएं, अभिलाषाएं , कुछ खुदी की बुलंदी की आस,
कुछ स्वप्न-सुंदरी सी सुन्दर एक जीवन-साथी की तलाश,
थोड़ी गरिमा, थोड़ी निष्ठां और थोड़ी मेरी भक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है,
कुछ मेरे भीतर की भड़ास, कुछ कुत्सित कुपित सोच मेरी,
कुछ द्वंद्व मेरे, कुछ द्वेष मेरे, कुछ बेढंगी सी खोज मेरी,
कुछ पूर्वाग्रह, कुछ स्वार्थ मेरे, कुछ चुगली करने की आदत,
कुछ अतिशय जल्दी करने की अनचाही सी मेरी फितरत,
ये मेरे मन का दर्पण है, ये मेरी इच्छा शक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है.......
Monday, March 22, 2010
Thursday, March 18, 2010
बहती नदिया...
सोच रहा हूँ बहती नदिया क्या-क्या मुझसे कहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है,
ऊंच नीच सब भेद मिटाती क्या पर्वत क्या सागर
कहीं डूबा दो हस्ती अपनी कहीं डूबा दो गागर,
जो भी चाहे उसकी बस ये प्यास बुझाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है॥
सौभाग्य - वरण वो ही करता जिसने है चलना सीखा,
कंटक पथ पर तूफानों से जिसने है लड़ना सीखा
धीरज से चलो निरंत्तर बस वो यही सिखाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है....
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है,
ऊंच नीच सब भेद मिटाती क्या पर्वत क्या सागर
कहीं डूबा दो हस्ती अपनी कहीं डूबा दो गागर,
जो भी चाहे उसकी बस ये प्यास बुझाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है॥
सौभाग्य - वरण वो ही करता जिसने है चलना सीखा,
कंटक पथ पर तूफानों से जिसने है लड़ना सीखा
धीरज से चलो निरंत्तर बस वो यही सिखाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है....
Wednesday, March 17, 2010
चौराहा...
हर पग एक चौराहा होता,
चार कदम चलते ही मिलता,
एक नव पथिक साथ जो चलता,
तीन चार पग चल कर मुड़ता,
साथ, यहीं तक उसका होता,
थोडा कष्ट ह्रदय में होता,
फिर भी मानव आगे बढ़ता,
अगले ही पग अगला मिलता,
खिलता गाता और मुस्काता
बात-बात में हँसता रोता
पल-पल साथ है उसका होता
संग में दोनों कसमे खाते
बिछड़ेंगे न मरते जीते
लेकिन, समय-चक्र फिर आता,
आगे फिर चौराहा आता,
दोनों के पथ अलग हैं होते,
दूर होते हैं हसते रोते,
अपने-अपने रस्ते जाते,
लेकिन मन में साथ है होता
जीवन चक्र हमेशा चलता,
जीवन चक्र हमेशा चलता.......
चार कदम चलते ही मिलता,
एक नव पथिक साथ जो चलता,
तीन चार पग चल कर मुड़ता,
साथ, यहीं तक उसका होता,
थोडा कष्ट ह्रदय में होता,
फिर भी मानव आगे बढ़ता,
अगले ही पग अगला मिलता,
खिलता गाता और मुस्काता
बात-बात में हँसता रोता
पल-पल साथ है उसका होता
संग में दोनों कसमे खाते
बिछड़ेंगे न मरते जीते
लेकिन, समय-चक्र फिर आता,
आगे फिर चौराहा आता,
दोनों के पथ अलग हैं होते,
दूर होते हैं हसते रोते,
अपने-अपने रस्ते जाते,
लेकिन मन में साथ है होता
जीवन चक्र हमेशा चलता,
जीवन चक्र हमेशा चलता.......
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