Monday, July 26, 2010

लाफिंग सेरेमनी

२६ जुलाई हाँ, २६ जुलाई 2008 , भीड़ में खड़ा था मैं, हनुमान मंदिर चौराहे पर, अपने कुछ दोस्तों के साथ, वहीं वोमुझे देखकर मुस्कुराई थी, एक मोहक मुस्कान, मुझे लगा मुझे देखकर हंस रही है लेकिन नहीं......... मुस्कुरा रहीथी वो, पहली बार किसी लड़की ने मुझे देखकर ऐसे मुस्कान बिखेरी थी........ अजीब सा उन्माद भरा था मेरे मन में,
दुसरे दिन रास्ते में रोक कर मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया था, २९ को मुझे दिल्ली जाने के लिए वैशालीएक्सप्रेस पकडनी थी, ३० को मेरे दिल्ली पहुचने के बाद तो लगा कि जैसे मैं सब कुछ भूल गया हूँ, दिल्ली में सामानवगैरह खरीद कर रूम सेट करना था ताकि पढाई आगे जारी रह सके, अभी शाम को गद्दे वगैरह खरीदने में मैं काफीव्यस्त था........ कि बंटी ने आकर मुझसे कहा -तीन चार मिस्ड काल्स हैं मोबाइल पे, उसी के होंगे, मेरी तो हिम्मतडोल गयी, कैसे बातें करूँगा उससे मैं? क्या कहूँगा?
..... खैर ,
येही सब सोचते हुए मैंने उसका नंबर dial किया, रिंग्स बजनी शुरू हो गयीं थी ........लगता था जैसे कि अच्छा होताअगर वो फ़ोन नहीं उठाती, दिल बैठा जा रहा था मेरा, धीरे-धीरे सांसें भी फूल रही थी, दोनों पैर काँप रहे थे, तभीअचानक रिंग्स बंद हो गयीं......... और उधर से "हेल्लो" कि आवाज़ आई........ जैसे झटका लगा हो mujhe .... गलेसे स्वर ही गायब थे........फिर भी हिम्मत की मैंने और कहा.......हाँ... वो तुम्हारी तीन चार मिस्ड काल्सथी........उसने कहा.......हाँ.........वो तीन दिन से बात नहीं हुई थी ना........ इसीलिए मैंने सोचा........सोचा कि हालचाल ले लूं, ऐसे ही धीरे धीरे बातों का सिलसिला बढ़ता गया ............. चौथे पांचवे मिनट में मैंने उससे कहाये बताओ दोस्ती ? या प्यार........ ? उसने कहा "आप जो कहो" मैंने कहा- प्यार? ...............
बस इतना कहना था कि खुल के हंसी वो .........हंसती रही...........हंसती रही....जैसे क्या मिल गया हो उसे? एक
हंसी .........बिलकुल निर्मल पवित्र नदी की तरह, जैसे सावन की पहली बारिश, जैसे सुबह सुबह कोयल की कूक,
...........मैं हेल्लो, हेलो करता रह गया और वो थी कि बस हंसती रही ..............हंसती रही..........?
..........आज फिर २६ जुलाई है ,,और वही वक़्त जब मैंने उसे पहली बार देखा था......आज भी है उसकी वो हंसी मेरेसाथ, और हम दोनों......... हंसकर एक दूसरे के आगोश में मना रहे हैं अपनी दूसरी "लाफिंग सेरेमनी"
...........
"ये थी मेरे मित्र सुधीर जी की आपबीती, भावनाएं उनकी हैं मैंने तो केवल अपने शब्द रखे हैं"

Tuesday, July 13, 2010

बरसात...

बहुत दिनों से था मन...
जाने कैसी उलझन में,
कुछ बातें मन के भीतर...
और कुछ बाहर,
कोई तालमेल नहीं था उनमें
पता नहीं क्या सोचता था मन...
जैसे...
जैसे हवा ठहरी हुई हो और पत्ते भी कर रहे हो किसी का इंतज़ार...
बाहर भी उमस काफी थी इन दिनों,
पसीने से लथपथ शरीर और उलझनों से संतापित मन,
दोनों ही नहीं समझ पा रहे थे कुछ भी
कैसे निबटें खुद से?
कैसे कहें खुद से?
कैसे समझाएं खुद को?
कुछ समझ नहीं रहा था
कभी मन करता था कि फूट फूट के रोयें
तो कभी चिल्लाएं
गले को इतना दर्द दें कि बस.........
शायद कोई नहीं...
हाँ.... कोई नहीं समझता था उलझन
लेकिन....
फिर वो शाम की बारिश
जैसे इंतज़ार कर रही हों पत्तियां
रुकी हवा स्वागतोत्सुक हो उसके
घनी काली घटाओं ने दिया साथ
जम के बरसीं वो आज
पत्ती, फूल, सड़क, मकान.... सभी भीग रहे थे
आज मैं भी छत पर था
बादलों की गरज और तड ताडाती बिजली ने उकसाया मुझे भी
भीग रहे थे तन मन
बरबस बोल पड़ा मैं भी, निकल पड़े मेरे अरमान,
खूब रोया , खूब चिल्लाया
विलीन हो रहे थे मेरे आंसू और बारिश की बूँदें
आखिर कैसे पहले निकल सकता था मेरा उन्माद?
कैसे मिल पाते दोनों?
मेरा चीत्कार और बारिश की बूँदें दोनों हो रहे थे एकाकार,
जाने कहाँ तक भीगा मैं?
और मेरा मन!!!!!
आज तो बारिश ने उसे जमकर भिगोया,
जम कर बहा मेरा उन्माद
सच है, सैलाब शांत होते जरूर हैं
पर वक़्त लगता है
अब बारिश भी धीमी हो गई है
उसने बंद कर दिए हैं थपेड़े, अब सहला रही है मेरे मन को
जैसे.................
हाँ....... जैसे बचपन में फटकारने के बाद सहलाते थे पिताजी
निकल जाता था सारा द्वंद्व और स्वच्छ हो जाता था मन
आज हूँ मैं स्वच्छ एक नया जन्म है मेरा
सच है........
धो देती है बारिश बहुत कुछ....
जब बरसती है जमकर..........