२६ जुलाई हाँ, २६ जुलाई 2008 , भीड़ में खड़ा था मैं, हनुमान मंदिर चौराहे पर, अपने कुछ दोस्तों के साथ, वहीं वोमुझे देखकर मुस्कुराई थी, एक मोहक मुस्कान, मुझे लगा मुझे देखकर हंस रही है लेकिन नहीं......... मुस्कुरा रहीथी वो, पहली बार किसी लड़की ने मुझे देखकर ऐसे मुस्कान बिखेरी थी........ अजीब सा उन्माद भरा था मेरे मन में,
दुसरे दिन रास्ते में रोक कर मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया था, २९ को मुझे दिल्ली जाने के लिए वैशालीएक्सप्रेस पकडनी थी, ३० को मेरे दिल्ली पहुचने के बाद तो लगा कि जैसे मैं सब कुछ भूल गया हूँ, दिल्ली में सामानवगैरह खरीद कर रूम सेट करना था ताकि पढाई आगे जारी रह सके, अभी शाम को गद्दे वगैरह खरीदने में मैं काफीव्यस्त था........ कि बंटी ने आकर मुझसे कहा -तीन चार मिस्ड काल्स हैं मोबाइल पे, उसी के होंगे, मेरी तो हिम्मतडोल गयी, कैसे बातें करूँगा उससे मैं? क्या कहूँगा?
..... खैर ,
येही सब सोचते हुए मैंने उसका नंबर dial किया, रिंग्स बजनी शुरू हो गयीं थी ........लगता था जैसे कि अच्छा होताअगर वो फ़ोन नहीं उठाती, दिल बैठा जा रहा था मेरा, धीरे-धीरे सांसें भी फूल रही थी, दोनों पैर काँप रहे थे, तभीअचानक रिंग्स बंद हो गयीं......... और उधर से "हेल्लो" कि आवाज़ आई........ जैसे झटका लगा हो mujhe .... गलेसे स्वर ही गायब थे........फिर भी हिम्मत की मैंने और कहा.......हाँ... वो तुम्हारी तीन चार मिस्ड काल्सथी........उसने कहा.......हाँ.........वो तीन दिन से बात नहीं हुई थी ना........ इसीलिए मैंने सोचा........सोचा कि हालचाल ले लूं, ऐसे ही धीरे धीरे बातों का सिलसिला बढ़ता गया ............. चौथे पांचवे मिनट में मैंने उससे कहाये बताओ दोस्ती ? या प्यार........ ? उसने कहा "आप जो कहो" मैंने कहा- प्यार? ...............
बस इतना कहना था कि खुल के हंसी वो .........हंसती रही...........हंसती रही....जैसे क्या मिल गया हो उसे? एक
हंसी .........बिलकुल निर्मल पवित्र नदी की तरह, जैसे सावन की पहली बारिश, जैसे सुबह सुबह कोयल की कूक,
...........मैं हेल्लो, हेलो करता रह गया और वो थी कि बस हंसती रही ..............हंसती रही..........?
..........आज फिर २६ जुलाई है ,,और वही वक़्त जब मैंने उसे पहली बार देखा था......आज भी है उसकी वो हंसी मेरेसाथ, और हम दोनों......... हंसकर एक दूसरे के आगोश में मना रहे हैं अपनी दूसरी "लाफिंग सेरेमनी" ...........
"ये थी मेरे मित्र सुधीर जी की आपबीती, भावनाएं उनकी हैं मैंने तो केवल अपने शब्द रखे हैं"
Monday, July 26, 2010
Tuesday, July 13, 2010
बरसात...
बहुत दिनों से था मन...
जाने कैसी उलझन में,
कुछ बातें मन के भीतर...
और कुछ बाहर,
कोई तालमेल नहीं था उनमें
पता नहीं क्या सोचता था मन...
जैसे...
जैसे हवा ठहरी हुई हो और पत्ते भी कर रहे हो किसी का इंतज़ार...
बाहर भी उमस काफी थी इन दिनों,
पसीने से लथपथ शरीर और उलझनों से संतापित मन,
दोनों ही नहीं समझ पा रहे थे कुछ भी
कैसे निबटें खुद से?
कैसे कहें खुद से?
कैसे समझाएं खुद को?
कुछ समझ नहीं आ रहा था
कभी मन करता था कि फूट फूट के रोयें
तो कभी चिल्लाएं
गले को इतना दर्द दें कि बस.........
शायद कोई नहीं...
हाँ.... कोई नहीं समझता था उलझन
लेकिन....
फिर वो शाम की बारिश
जैसे इंतज़ार कर रही हों पत्तियां
रुकी हवा स्वागतोत्सुक हो उसके
घनी काली घटाओं ने दिया साथ
जम के बरसीं वो आज
पत्ती, फूल, सड़क, मकान.... सभी भीग रहे थे
आज मैं भी छत पर था
बादलों की गरज और तड ताडाती बिजली ने उकसाया मुझे भी
भीग रहे थे तन मन
बरबस बोल पड़ा मैं भी, निकल पड़े मेरे अरमान,
खूब रोया , खूब चिल्लाया
विलीन हो रहे थे मेरे आंसू और बारिश की बूँदें
आखिर कैसे पहले निकल सकता था मेरा उन्माद?
कैसे मिल पाते दोनों?
मेरा चीत्कार और बारिश की बूँदें दोनों हो रहे थे एकाकार,
जाने कहाँ तक भीगा मैं?
और मेरा मन!!!!!
आज तो बारिश ने उसे जमकर भिगोया,
जम कर बहा मेरा उन्माद
सच है, सैलाब शांत होते जरूर हैं
पर वक़्त लगता है
अब बारिश भी धीमी हो गई है
उसने बंद कर दिए हैं थपेड़े, अब सहला रही है मेरे मन को
जैसे.................
हाँ....... जैसे बचपन में फटकारने के बाद सहलाते थे पिताजी
निकल जाता था सारा द्वंद्व और स्वच्छ हो जाता था मन
आज हूँ मैं स्वच्छ एक नया जन्म है मेरा
सच है........
धो देती है बारिश बहुत कुछ....
जब बरसती है जमकर..........
जाने कैसी उलझन में,
कुछ बातें मन के भीतर...
और कुछ बाहर,
कोई तालमेल नहीं था उनमें
पता नहीं क्या सोचता था मन...
जैसे...
जैसे हवा ठहरी हुई हो और पत्ते भी कर रहे हो किसी का इंतज़ार...
बाहर भी उमस काफी थी इन दिनों,
पसीने से लथपथ शरीर और उलझनों से संतापित मन,
दोनों ही नहीं समझ पा रहे थे कुछ भी
कैसे निबटें खुद से?
कैसे कहें खुद से?
कैसे समझाएं खुद को?
कुछ समझ नहीं आ रहा था
कभी मन करता था कि फूट फूट के रोयें
तो कभी चिल्लाएं
गले को इतना दर्द दें कि बस.........
शायद कोई नहीं...
हाँ.... कोई नहीं समझता था उलझन
लेकिन....
फिर वो शाम की बारिश
जैसे इंतज़ार कर रही हों पत्तियां
रुकी हवा स्वागतोत्सुक हो उसके
घनी काली घटाओं ने दिया साथ
जम के बरसीं वो आज
पत्ती, फूल, सड़क, मकान.... सभी भीग रहे थे
आज मैं भी छत पर था
बादलों की गरज और तड ताडाती बिजली ने उकसाया मुझे भी
भीग रहे थे तन मन
बरबस बोल पड़ा मैं भी, निकल पड़े मेरे अरमान,
खूब रोया , खूब चिल्लाया
विलीन हो रहे थे मेरे आंसू और बारिश की बूँदें
आखिर कैसे पहले निकल सकता था मेरा उन्माद?
कैसे मिल पाते दोनों?
मेरा चीत्कार और बारिश की बूँदें दोनों हो रहे थे एकाकार,
जाने कहाँ तक भीगा मैं?
और मेरा मन!!!!!
आज तो बारिश ने उसे जमकर भिगोया,
जम कर बहा मेरा उन्माद
सच है, सैलाब शांत होते जरूर हैं
पर वक़्त लगता है
अब बारिश भी धीमी हो गई है
उसने बंद कर दिए हैं थपेड़े, अब सहला रही है मेरे मन को
जैसे.................
हाँ....... जैसे बचपन में फटकारने के बाद सहलाते थे पिताजी
निकल जाता था सारा द्वंद्व और स्वच्छ हो जाता था मन
आज हूँ मैं स्वच्छ एक नया जन्म है मेरा
सच है........
धो देती है बारिश बहुत कुछ....
जब बरसती है जमकर..........
Monday, March 22, 2010
मेरी कविता...
मेरे मन की अभिव्यक्ति है ,
ये कविता मेरी शक्ति है.....
कुछ विषयों पर मेरा चिंतन,कुछ हर छन में जीवन की प्यास,
कुछ अपने शब्दों में लिखकर एक माला बुनने का प्रयास,
कुछ आशाएं, अभिलाषाएं , कुछ खुदी की बुलंदी की आस,
कुछ स्वप्न-सुंदरी सी सुन्दर एक जीवन-साथी की तलाश,
थोड़ी गरिमा, थोड़ी निष्ठां और थोड़ी मेरी भक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है,
कुछ मेरे भीतर की भड़ास, कुछ कुत्सित कुपित सोच मेरी,
कुछ द्वंद्व मेरे, कुछ द्वेष मेरे, कुछ बेढंगी सी खोज मेरी,
कुछ पूर्वाग्रह, कुछ स्वार्थ मेरे, कुछ चुगली करने की आदत,
कुछ अतिशय जल्दी करने की अनचाही सी मेरी फितरत,
ये मेरे मन का दर्पण है, ये मेरी इच्छा शक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है.......
ये कविता मेरी शक्ति है.....
कुछ विषयों पर मेरा चिंतन,कुछ हर छन में जीवन की प्यास,
कुछ अपने शब्दों में लिखकर एक माला बुनने का प्रयास,
कुछ आशाएं, अभिलाषाएं , कुछ खुदी की बुलंदी की आस,
कुछ स्वप्न-सुंदरी सी सुन्दर एक जीवन-साथी की तलाश,
थोड़ी गरिमा, थोड़ी निष्ठां और थोड़ी मेरी भक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है,
कुछ मेरे भीतर की भड़ास, कुछ कुत्सित कुपित सोच मेरी,
कुछ द्वंद्व मेरे, कुछ द्वेष मेरे, कुछ बेढंगी सी खोज मेरी,
कुछ पूर्वाग्रह, कुछ स्वार्थ मेरे, कुछ चुगली करने की आदत,
कुछ अतिशय जल्दी करने की अनचाही सी मेरी फितरत,
ये मेरे मन का दर्पण है, ये मेरी इच्छा शक्ति है,
ये कविता मेरी शक्ति है, मेरे मन की अभिव्यक्ति है.......
Thursday, March 18, 2010
बहती नदिया...
सोच रहा हूँ बहती नदिया क्या-क्या मुझसे कहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है,
ऊंच नीच सब भेद मिटाती क्या पर्वत क्या सागर
कहीं डूबा दो हस्ती अपनी कहीं डूबा दो गागर,
जो भी चाहे उसकी बस ये प्यास बुझाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है॥
सौभाग्य - वरण वो ही करता जिसने है चलना सीखा,
कंटक पथ पर तूफानों से जिसने है लड़ना सीखा
धीरज से चलो निरंत्तर बस वो यही सिखाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है....
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है,
ऊंच नीच सब भेद मिटाती क्या पर्वत क्या सागर
कहीं डूबा दो हस्ती अपनी कहीं डूबा दो गागर,
जो भी चाहे उसकी बस ये प्यास बुझाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है॥
सौभाग्य - वरण वो ही करता जिसने है चलना सीखा,
कंटक पथ पर तूफानों से जिसने है लड़ना सीखा
धीरज से चलो निरंत्तर बस वो यही सिखाती रहती है,
कहती है मुझसे बहना है इसीलिए बस बहती है....
Wednesday, March 17, 2010
चौराहा...
हर पग एक चौराहा होता,
चार कदम चलते ही मिलता,
एक नव पथिक साथ जो चलता,
तीन चार पग चल कर मुड़ता,
साथ, यहीं तक उसका होता,
थोडा कष्ट ह्रदय में होता,
फिर भी मानव आगे बढ़ता,
अगले ही पग अगला मिलता,
खिलता गाता और मुस्काता
बात-बात में हँसता रोता
पल-पल साथ है उसका होता
संग में दोनों कसमे खाते
बिछड़ेंगे न मरते जीते
लेकिन, समय-चक्र फिर आता,
आगे फिर चौराहा आता,
दोनों के पथ अलग हैं होते,
दूर होते हैं हसते रोते,
अपने-अपने रस्ते जाते,
लेकिन मन में साथ है होता
जीवन चक्र हमेशा चलता,
जीवन चक्र हमेशा चलता.......
चार कदम चलते ही मिलता,
एक नव पथिक साथ जो चलता,
तीन चार पग चल कर मुड़ता,
साथ, यहीं तक उसका होता,
थोडा कष्ट ह्रदय में होता,
फिर भी मानव आगे बढ़ता,
अगले ही पग अगला मिलता,
खिलता गाता और मुस्काता
बात-बात में हँसता रोता
पल-पल साथ है उसका होता
संग में दोनों कसमे खाते
बिछड़ेंगे न मरते जीते
लेकिन, समय-चक्र फिर आता,
आगे फिर चौराहा आता,
दोनों के पथ अलग हैं होते,
दूर होते हैं हसते रोते,
अपने-अपने रस्ते जाते,
लेकिन मन में साथ है होता
जीवन चक्र हमेशा चलता,
जीवन चक्र हमेशा चलता.......
Friday, May 1, 2009
khushiii....the pleasure..
Hey friends,
I am a youth and for all the world pleasur happiness n peace is my strongest desire, we cant develop and cant make any progres without peace,devotion, love,and brotherhood...
"Jai ho" is the title of my blog its only for the "victory of humanity"
enjoy...
I am a youth and for all the world pleasur happiness n peace is my strongest desire, we cant develop and cant make any progres without peace,devotion, love,and brotherhood...
"Jai ho" is the title of my blog its only for the "victory of humanity"
enjoy...
Subscribe to:
Posts (Atom)